पाठक मंच

1जहाँ स्त्रीपुरुष, धर्म, जाति का भेदभाव नहीं होता

मेरा नाम अंकिता है। मैं ग्यारहवीं कक्षा में पढ़ती हूँ। मैं मौलीजागराँ (चंडीगढ़) की रहने वाली हूँ। मुझे नौजवान भारत सभा में शामिल हुए दो साल हो गए हैं। सभा में रहकर जो कुछ मैंने सीखा है, जो जाना है, उस बारे में मैं अपना अनुभव साझा कर रही हूँ।

नौजवान भारत सभा के कार्यकर्ताओं ने मौलीजागर में प्रचार किया था। मैंने उन्हें प्रचार करते देखा, तो मैंने सोचा कि वे सरकार की तरह शोर-गुल करके चले जाएँगे। लेकिन फिर मुझे पता चला कि सभा के कुछ कार्यकर्ता भी अपना समय निकालकर हमारे क्षेत्र में ‘नई सवेर पाठशाला’ की ओर से ट्यूशन पढ़ाते हैं, तो मेरी दिलचस्पी बढ़ गई।

धीरे-धीरे पता चला कि नौजवान भारत सभा शहीद भगतसिंह के विचारों को समर्पित नौजवानों का एक क्रांतिकारी संगठन है और यह भगतसिंह के सपनों के समाज के निर्माण के लिए काम करता है। धीरे-धीरे मैंने सभा की बैठकों में जाना शुरू किया। मेरे लिए यह सब नया था। शुरू में तो मैं कुछ भी नहीं बोलती थी, मुझे अंदर ही अंदर डर-सा लगता रहता था। लेकिन जल्द ही मैं सभा के बाक़ी साथियों से घुल-मिल गई। मुझे पहली बार पता चला था कि एक ऐसी संस्था है, जहाँ लड़के-लड़कियों में कोई भेदभाव नहीं होता, जहाँ जाति/धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होता।

अपने घर में भी जो बात मुझे खलती थी, वह यह थी कि घर पर मेरी राय कोई मायने नहीं रखती। हमारे यहाँ भी ज़्यादातर घरों जैसा ही माहौल है कि अक्सर घर के पुरुष, चाहे वे बड़े भाई हों या पिता, हमें यह कहकर चुप करा देते हैं कि तुम अभी ये बातें नहीं जानती, तुम्हें चुप रहना चाहिए। लेकिन दूसरी ओर सभा की बैठकों में हर छोटे-छोटे मामले में हमारी राय ली जाती है।

23 मार्च के शहीदों और 28 सितंबर को शहीद भगतसिंह की जयंती के अवसर पर नौजवान भारत सभा द्वारा चलाए गए अभियान में मैं भी शामिल थी। इन अभियानों में मैंने देखा है कि अभियान कैसे चलाना है, कितना पर्चा छापना है, किस क्षेत्र में बाँटना है आदि हर मुद्दे पर हमारी राय ली जाती है। बल्कि अगर अभियान के दौरान कोई ग़लती हो जाती है, तो इसकी भी समीक्षा की जाती है। ये सब मेरे लिए बिल्कुल नया अनुभव था। सभा में रहकर मैंने जो सीखा और जो सीख रही हूँ, ऐसा अवसर कहीं और मिलना शायद मेरे लिए कठिन था। मैं हमेशा सभा की नियमित चर्चाओं में भाग लेती हूँ, जहाँ कई नई चीज़ें सीखने को मिलती हैं। ऐसी चीज़ें जो हमें स्कूल की किताबों में नहीं बताई जाती हैं। सिर्फ़ स्कूली किताबें पढ़कर कोई व्यक्ति आई.ए.एस. अधिकारी तो बन सकता है लेकिन एक अच्छा इंसान नहीं बन सकता।

अंकिता, चंडीगढ़

मुक्ति संग्राम – अप्रैल 2024 में प्रकाशित

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